सभी उसको यही कहते है। कि उस इन्सान को भूल जाना ही आप के लिए बेहतर है। पहले वो मुस्कराती है। पर उसकी मुस्कराहट अधिक समह के लिए उसका साथ नहीं देती। ऐसा लगता है कि उसकी मुस्कराहट हमेशा उसके अन्दर छिपे हुए पनाह दर्द से हार जाती है। और वो दर्द आंसू बन कर उसकी आंखों से बाहर टपक पडता है।
अगर यह मामला उसके अपने हाथ में होता तो वो भी उसकी तरह एक कायर की तरह भाग जाती। लेकिन उसने उसका इंतज़ार करना ही ठीक समझा। कुछ रिश्ते ऐसे होते है। जिसको इन्सान खुद नहीं बनाता। वोह रिश्ते तो इस दुनिया को रचने वाला महाबली बनाता है। यह कोई मईना नहीं रखता कि रिश्ते सपूर्ण हो यह नहीं। लेकिन वो रिश्ते मर कर भी जिन्दा रहते है।
उसका रिश्ता भी उसके साथ अज़ीब था। उनका यह रिश्ता खुदा की दरगाह में बना था। हो सकता है कि पीछे वाली जिन्दगी में वो खुद उसको मरने के लिए छोड़ गई हो। और इस जिन्दगी में अब उसकी पारी थी। उसके जाने के बाद अपनी मुहाबत को जिन्दा रखना अब उसका फ़र्ज़ है वो उस गुज़रें हुए पलों को हर रोज़ याद रखती है।
वहीं इन्सान उसको भूल गया जिसको उसने खुदा समझ कर मुहब्बत की थी। लेकिन खुदा उसकी बेपनाह मुहाबत को भूल नहीं सका। अबू उसको कहता था,” खुदा तो तुम्हारे दिल के अन्दर रहता है। अपना वक़्त मत जाया करना। बस सच्चे दिल से उसको आवाज़ लगाना। वो अन्तरजामी सब समझ जायेगा। ” अब उसकी समझ में आता है अबू ने कितना सच्च कहा था।
जब भी उसको अपने महबूब की याद आती है। वो अल्लाह और गुरु जी को अरदास करती है। उसकी मासूमियत और सच्चे दिल से की हुई पुकार खुदा के दरवाज़े पर दस्कत देती है। और न ही खुदा न ही गुरु जी किसी भेद भाह के चक्र में पड़ते है। वो कोई ऐसा खेल खेलते है कि वो उन दोनों को फिर से कनेक्ट कर देते है। फ़र्क सिर्फ इतना है। सिर्फ वही समझ सकती है.यो इन्सान डर गया वो कैसे समझ सकता है।
एक नहीं बल्कि अक्सर वो एक दूसरे से पुछा करते थे, “हम क्यों एक दूसरे को मिलें हैं। ” तब दोनों के पास कोई ज़वाब नहीं हुआ करता था। पर अब ज़वाब मिल चूका है। उससे मिलने से पहले वो बेचैन थी। वो अधूरा सा महसूस करती थी उसके मन में एक हलचल सी रहती थी। उसके जाने के बाद एक ऐसा तूफ़ान आया था कि वोह टूट कर बिखर गई। तूफ़ान बहुत भयानक था कि वो उसकी लिपट में गिरफत हो गई। सुना है उसको एक नहीं बल्के दो दो महान ताकते उसकी रक्षा करती है। उसकी रूह और जिस्म इतना जख्मी था कि किसी को इस बात की उम्मीद नहीं थी कि वो फिर से चल सकेगी। उसके बगैर उसने चलना भी सीख लिए और दौड़ना भी। पर एक जख्म कभी भर नहीं सका। और वही जखम एक नासूर की तरह रिसने लगा।
सुना है उसकी रूह में लगा हुआ वो जख्म इतना खतरनाक साबित हुआ कि ना तो उसको किसी से कोई उम्मीद है और ना हीं कोई उसकी कोई खाविश है। उसकी मरी हुई रूह इतनी शांत है कि कभी कभी वो खुद भी इस शांति और ख़ालीपन से डर जाती है। अभी तक वो यह नहीं जान पाई कि यह हद से बढ़ कर शांति किसी आने वाले ख़तरनाक तूफ़ान का इशारा तो नहीं है ।
अब उसके दिल में न कोई हलचल है और न ही कोई अरमान। नहीं, अब वो उसका इंतज़ार नहीं करती। उसको हर एक इन्सान एक फरेबी लगता है। और उसका अपने आप भर भी विश्वास खो चूका है। लेकिन वो फिर भी जिन्दा है। क्युकि अभी उसको खुदा के फैसले का इंतज़ार है।