
पूरी दुनिया महिला दिवस मनाने में व्यस्त है। हालाँकि, एक महिला जिसका जीवन दो महिलाओं द्वारा तय किया गया था, जिनका वो सम्मान करती थी और प्यार करती थी और उन दोनों ने उसको मौत ए सजाये फैसला दिया था । दुर्भाग्य से, उसने उन पर भरोसा किया था । वो उसके परिवार की थी । एक उसकी प्यारी माँ थी, और दूसरी उसकी तथाकथित बहन थी। यह लेख उन दो बुद्धिमान, सुंदर और स्वार्थी महिलाओं के लिए समर्पित है।
उसके काले घुंघराले बालों में पड़ा हुआ खून अब सूख गया था। उसके मासूम चेहरे पर एक ख़ौफ़ सा छाया हुआ था। आंखों में उदासी ते वीरानगी थी। आज और कल वाली उस बच्ची में कोहों का अन्तर था। उसके कानों में बस दो ही आवाज़े गूंज रही थी। एक आवाज़ थी जिसमें उसको सिर्फ गोलियां चलने की आवाज़ आ सुनाई दे रही थी और दूसरी आवाज़ उसकी मां की थी यो उसके बाबा से कह रही थी कि, “लोग क्या कहेंगे। हम लोगो को क्या बोलोगें। हमारी ख़ानदान की इज़त का होगा।”
लेकिन उसके पिता जी कहता रहे,”ऐसी की तैसी उस खानदान की यो मेरी बेटी की खुशियों को खा चुकी है। अब तुम अपनी ही बेटी को देश निकाला सुना रही हो।”
और माँ कह रही थी,”वो मेरी भी बेटी है। बीनू के पास होगी तो वोह भूलने की कोशिश करेगी। यहां रहेगी तो हर रोज़ उसकी कबर पर जा कर रोती रहेगी या फिर उन लोगो से बदला लेने की कोशिश करेगी।”
लेकिन उसके पिता जी मानने को तैयार नहीं थे,”हम अपनी बच्ची को हमेशा के लिए खो देंगे। मेरी बच्ची जी नहीं पाएगी। “
पर माँ कहती रही,”समय बीतने के साथ वह सब कुछ भूल जाएगी।। उसको हर हालत में यहाँ से जाना होगा। वो सिर्फ आपकी ही नहीं बल्कि मेरी बेटी भी है।”
उसकी माँ उसके कमरे में आई और उसे फर्श से उठने में मदद की और उसे बाथरूम में ले गई, “उठो मेरा राजा, मुझे तुम्हारे बाल धोने दो।” उसने अपनी माँ को देखा, और वह यह पता नहीं लगा सकी कि उसकी माँ को उससे अधिक प्यार है या परिवार की प्रतिष्ठा से। “
उसने अपने पिता को यह कहते हुए सुना, “मेरा भाई सही था। कभी भी महिलाओं को निर्णय लेने की अनुमति न दें। उस घर को कभी भी खुशी नहीं मिलती और वो घर कभी कामजाब नहीं होता जहां महिलाएं निर्णय लेती हैं।”
माँ ने उसको बालों को शैम्पू से अच्छी तरह धोया। फिर माँ ने उसके शरीर से खून को स्पंज से धोया। लेकिन वह चुपचाप अबू के खून को अपने से अलग होते देखती रही जो अब पाइप की और बह रहा था। उसको ऐसा लग रहा था कि उसकी किस्मत भी उस खून के साथ ही बह रही थी। उस दिन “लोग क्या कहेंगे” ने न केवल अबू के सूखे खून को धोया बल्कि उसकी पहचान भी छीन ली थी।
कुछ हफ्तों बाद, वह उस जगह को घूर रही थी, जहां अबू ने आतंकियों से लड़ते हुए अपनी आखिरी सांस ली थी। हर जगह खून के धब्बे थे, लेकिन वह जानती थी कि अबू कहां है। उसने अबू अलविदा कहा, लेकिन उसे याद दिलाया, “मुझे ढूंढना मत भूलना। तुमने वापस आने का वादा किया था ।”
उसने अपना बैकपैक ले रखा था। वह इस जगह को हमेशा के लिए छोड़ने को लिए तैयार थी। उसका खेल क्षेत्र अब साफ नहीं था। सैनिकों के खून से मिट्टी लाल रंग की हो गई थी। वह उनसे खेलने की जगह खाली करने के लिए हर दिन लड़ती थी। लेकिन उस दिन, उसने उन योद्धाओं को हमेशा के लिए अपना पसंदीदा स्थान दे दिया था । उसकी आँखें उदास थीं लेकिन बिना किसी आँसू के। वह कुछ हफ्ते पहले रोई थीं पर उस दिन उसकी आँखें खाली थी ।
अचानक, उसने अपनी माँ की उदास आवाज़ सुनी, “कभी वापस मत आना”। कई दशकों बाद वही वाक्य दोहराए गए, “लोग क्या कहेंगे।” या “वापस मत आना।” लेकिन इस बार, कुछ भिन्नता थी। नहीं, वह स्टैंड लेने या दूसरों को रोकने के लिए उसके पिता की तरह बहादुर नहीं था। अक्सर उसने कहा था , “मैं तुम्हारे लिए सब कुछ हूं।” इसके बजाय, उसने उसे अकेला मरने के लिए छोड़ दिया। ठीक कहा था किसी ने वो एक इंटेलीजेंट आदमी है उसके पास असली मस्तिष्क है और अच्छी तरह से जानता है कि उसका उपयोग कहां और कब करना है।
उसका जुर्म था कि उसने किसी को अपना खुदा मान कर उससे बेइन्ताह मुहबत की थी। उसको सजा-ए-मौत का ऐलान हुआ था। जज भी वही थे सज़ा सुनाने वाले भी वो खुद थे। पर सुनने वाली और उस सज़ा को निभाने वाली वो अकेली ही है । इल्ज़ाम भी कितना ख़तरनाक था, “लोग क्या कहेगेँ”. और अब सोचती है कि लोग क्या कहते है। सिर्फ यही बात मान्य रखती है कि दूनिया क्या सोचती है इस वार से कोई नहीं फ़र्क नहीं पड़ता के किसी को जीते जी मार दिया जाए।
कहानी दिल को छु गई के बजाय मैं कहना चाहूँगा यह दिल में गहरी उतर गई है । किसी लड़की को शादी से पहले अच्छी नौकरी होना चाहिए, उसे कोई न कोई उचित काम धंधा आता हो ।
मुझे बुरा लगता है सारा जब घर वाले लडकियों की पहले शादी कर देते है । ग्रामीण इलाकों में यहाँ गुणयुक्त शिक्षा का अभाव रहता है, 18 के आसपास यह कर बेटी की शादी की जाती है कि उम् कितनी बढ गई है । पर वही बेटी अपने माँ बाप को पूछने से, मायके जाने से पहले सौ बार सोचती है ।
समाज में पंचायतों के रूप आए दिन मीटिंगे होती है | जिसका मकसद होता है कमजोर व्यक्ति को लुटना । जो उस समय बली का बकरा बना हुआ है ।
आपकी लेखनी सादी, सच्ची और लोगों को रास्ता दिखाने वाली है । बहुत -बहुत धन्यवाद |🙂
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Thank u. You are right but it happens only in my beloved country.
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