
अलग हुई मिट्टी अपने वतन की मिट्टी से मिलने के लिया बेचैन है. उसकी रूह सम्पूर्ण होने के लिए अपनी अलग हुई रूह को ढूंढ रही है. यह तो सिर्फ खुदा ही जनता है कि कौन उसको बुला रहा. वो तो सिर्फ महसूस ही कर रही है. जब कठिन वकत आता है तो इंसान अपनों की कमी महसूस करता है. इंसान भी कितना भोला है अब तक यह नई समझ सका कि यह अपने तो अजनबी से भी खतरनाक है.हर एक इंसान के मन में कुछ दर्द होता है।
कोई ही ऐसा इंसान होगा जिसके मन में कोई डर ना हो। एक तथ यह वी है कि हर इंसान की एक कमज़ोरी होती है। कुछ लोग अपनी कमजोरी, डर, और दर्द को मासक के पीछे छुपा लेते है। पर कुछ लोग लाख कोशिश करने के बावजूद भी इनको नहीं छुपा सकते। समस्या की शरुआत यहाँ से ही शरू होती है क्यूंकि डर, दर्द, और कमज़ोरी को छुपाने में ही अपना वक़त जाया कर देते है। वो इतना बिजी हो जाते है इनको छुपाने के लिया कि वो इसके मतलब को ही भूल जाते है
इसमें इंसान का कोई कसूर नहीं होता क्यूंकि वो पैदा ही इस माहोल हुआ कि अब यह उसका जनम सिध अधिकार बन गया है। पूर्णय लोग दयालू हुआ करते थे और अपना सब कुछ दूसरो के लिए कुर्बान करने के लिए सोचा नहीं करते थे। पर अब जमाना बदल गया है। अब लोग देना नई बल्के सिर्फ लेना चाहते है। कुलयुग का जमाना हुआ ना इसलिए वो ऐसा करते है
लोग इतने लालची हो गए है कि वो अपने अंदर की ताकत को वी नहीं पहचान सकते। अगर वो अपनी ताकत को नहीं पहचान सकते तो इसका उप्योग वह कैसे करेगे। वे दूसरों की कमजोरियों और ताकत को कैसे समझेंगे? इंसान को यह जानना अवायचा है कि कमज़ोरी और ताकत इंसान के दिमाग और दिल में रहती है. अगर सही का चुनाव करोगे तो सफलता तो तब ही मिलेगी। गलत का चुनाव तो सिर्फ चक्रवियु की तरफ ही ले जाएगा। जिंदगी के चक्रवयु में फसा हुआ इंसान इतनी अहसानी से बाहर नहीं निकल सकता है। फिर तो कुछ होने का चांस भी नहीं क्यों के दल दल में फसा हुआ इंसान और दल दल में फसता चला जाता है। ना तो फिर भगवान् और ना ही इंसान मदद कर सकता है।